Ideas that have helped mankind summary in Hindi || Ideas That Have Helped Mankind By Bertrand Russell

 

Ideas That Have Helped Mankind

Bertrand Russell

Summary in Hindi

अंग्रेज़ दार्शनिक बर्टरन्ड रसल कुछ विचारों को परख कर देखते हैं कि उनमें से कौन से मानवजाति के लिए सहायक हुए हैं ।
संख्या : रसल को इसमें कोई संदेह नहीं कि जनसंख्या के बढ़ने से मानवजाति को सहायता मिली । बहुत समय पहले मनुष्य गुफाओं में रहते थे । वे वन्य पशुओं से भयभीत थे । बन्दरों की भाँति ठंड से बचने के लिए उनके शरीर पर बाल न थे । उन्हें भोजन की खोज में स्थान- स्थान पर भटकना पड़ता था । उस समय उनकी उच्चतर बुद्धि इन कठिनाइयों का मुकाबला न कर सकती थी । उनकी संख्या कम थी । तत्पश्चात् उन्होंने अपनी तकनीक और कौशल का प्रयोग अपना किया था । निश्चित रूप से यह मानवजाति के लिए सहायक हुआ ।
पशुओं से भिन्नता
मनुष्य पशुओं से विशेषकर दो बातों में कम  से कम समान होते चले गए । प्रथमतः जन्मजात कौशल की अपेक्षा ग्रहण किए गए कौशल में, दूसरे, भावनाओं पर विचारों के अधिपत्य में । मनुष्य व पशु मुसीबतों से पीड़ित होते हैं । जब कि मनुष्य उनके कारण को याद रखते हैं और भविष्य में उस प्रकार की मुसीबतों पर काबू पाने के उपाय करते हैं, पशु उनको भूल जाते हैं और वे उस प्रकार की मुसीबतों से बार-बार पीड़ित हो सकते हैं । परन्तु इस कारण मनुष्य कम सुखी होते हैं । वे चिन्तित रहते हैं और वास्तविक मुसीबतों की अपेक्षा उनके बारे में पूर्व विचार से दुखी होते हैं । वे लोग भी जिनकी निश्चित आय है, वे भी भविष्य में क्या हो सकता है, इसके दुख से बचे नहीं रहते । यह मनोवेग का दमन करने से पूर्व विचार होने का परिणाम है ।
आनन्द की विभिन्नता
मनुष्यों में विभिन्न आनन्द उठाने की योग्यता है जो कि पशुओं में नहीं है । पिंजरो में कैद कुछ शेरों को एक फिल्म जंगल में शेरों को सफलता पूर्वक लूटपाट करने के बारे में दिखाई गई। उस दृश्य से शेरों को कोई आनन्द प्राप्त न हुआ । पशुओं को संगीत, कविता, विज्ञान आदि से कोई आनन्द प्राप्त नहीं होता । मनुष्य अपनी बुद्धि के कारण मनोरंजन की इतनी अधिक विभिन्नता प्राप्त कर सकता है । परन्तु यह योग्यता ऊबने का कारण भी बनती है ।
परन्तु बर्टरन्ड रसल को लगता है कि मानव गौरव आनन्द प्राप्त करने की क्षमता में इतना निहित नहीं है जितना हमारे बौद्धिक और नैतिक गुणों में निहित है । परन्तु निश्चित रूप से मानव पशुओं से इसलिए भिन्न है कि मानव का ज्ञान पशुओं के ज्ञान से अधिक है ।
क्या सभ्यता ने हमें मैत्री भाव सिखाया?
किसी समूह में मनुष्य एक-दूसरे से किसी भी अन्य प्रजाति की अपेक्षा अधिक मैत्री भाव रखते हैं। वे अपने बूढ़ों और बीमारों की देखभाल करते हैं । इस प्रकार वे अधिकतम प्रजातियों की अपेक्षा एक-दूसरे के प्रति अधिक सौहार्दपूर्ण होते हैं । परन्तु समूह के बाहर वालों के प्रति वे हिंसक होते हैं । उनकी बुद्धि उनको अधिक हिंसक बनने की क्षमता प्रदान करती है । हो सकता है कि आने वाले समय में वे सभी के प्रति मैत्री भाव रखना सीख लें ।


रसल के अनुसार जिन विचारों ने मानवजाति की सहायता की है । उन्हें दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है ।
(
i ) वे जिन्होंने ज्ञान और तकनीक में योगदान दिया  
( ii ) वे जिनका सम्बन्ध नैतिकता और राजनीति से है  
भाषा का विकास
भाषा का क्रमिक विकास धीरे-धीरे हुआ है । परन्तु यह मानवजाति के लिए सहायक बड़ा कदम था क्योंकि इसके कारण खोजों और आविष्कारों को पीढ़ी दर पढिी को हस्तांतरित किया जा सका है ।
फिर लिखने की कला का विकास हुआ । इसका विकास भी धीरे-धीरे हुआ । पहले पहल संदेश देने के लिए चित्रों का प्रयोग किया गया । चित्रों से वर्णो का, और फिर अक्षरों के विकास की प्रक्रिया धीरे व क्रमिक थी । चीन में अक्षरों को लिखने का विकास कभी न हुआ ।
अग्नि
आग का प्रयोग मनुष्य की सहायता में भारी कदम था । सम्भवतः प्रारम्भ में आग का प्रयोग हमारे पूर्वज वन्य पशुओं को दूर रखने के लिए करते थे । परन्तु उन्हें उसकी गर्मी भी सुखद लगी । इसका प्रयोग भोजन पकाने में किया जा रहा है । भोजन पकाने में आग का प्रयोग अचानक हो गया होगा । किसी ने अकस्मात माँस का टुकड़ा आग में डाल दिया होगा । जब उसे बाहर निकाला गया होगा तो वह अधिक स्वादिष्ट लगा होगा । इस प्रकार आग का प्रयोग भोजन पकाने में होने लगा होगा ।
पशु-पालन
पशुओं को सिधाना, विशेषकर गायें और भेड़ों को पालना मनुष्य के लिए सहायक हुआ । कुछ मानव वैज्ञानिक मानते हैं कि पालतु पशुओं की उपयोगिता का पूर्व अनुमान न था । वे कबीले जिन्होंने गायें और भेड़ें पाली, समृद्ध हो गए थे ।
कृषि का आविष्कार
कृषि का आविष्कार बड़ा महत्त्वपूर्ण कदम था । परन्तु इसके साथ उर्वरता अनुष्ठान भी संलग्न थे जिनमें मानव बलि की आवश्यकता थी । बच्चों को मोलक के प्रति भेंट किया जाता था ताकि अच्छी फसल उपजे । परन्तु धीरे-धीरे यह रिवाज समाप्त हो गया क्योंकि अनाज बच्चों की बलि दिए बिना भी उग जाता था ।

बच्चों की बलि के संदर्भ में रसल स्मरण करते है कि औद्योगिकीकरण के प्रारम्भिक वर्षों में, सूती सामान के उत्पादन में अति छोटे बच्चों को लगाया जाता था । उनमें से अधिकतर बच्चे मर जाते थे । अब बच्चे काम पर नहीं लगाये जाते । इस बात का पता लगाने में शताब्दियाँ लग गईं कि अनाज़ बिना बच्चों की बलि दिए बिना भी उग जाएगा । परन्तु यह जानने में केवल एक शताब्दी लगी कि सूती माल का उत्पादन बच्चों को काम पर लगाए बिना भी हो सकता है । इससे संकेत मिलता है कि कुछ उन्नति हुई है ।

 

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