A child is born summary in Hindi || A Child is Born By Germaine Greer

 

A Child Is Born

Germaine Greer

Summary in Hindi

 

परम्परागत समुदायों में बच्चे का जन्म
परम्परागत समुदायों में माँ को बच्चे के जन्म की चिन्ताओं से मुक्त रखा जाता है । उसके लिए कई ढंग और प्रक्रियाएँ हैं । गर्भ के प्रति अनुष्ठानी दृष्टिकोण से गर्भवती महिला निषेध क्रियाओं और अनुष्ठानों से घिरी रहती है । इससे गर्भवती महिला सक्रिय ढंग से व्यस्त रहती है, जिस कारण वह चिन्तामुक्त रहती है । इसके अतिरिक्त उसे अपने पति, अपने परिवार और अपने समुदाय का भी सहारा प्राप्त होता है । वह सुरक्षित अनुभव करती है । उसे लगता है कि वह गर्भ का संचालन कर रही है, न कि उसके विपरीत ( गर्भ उसका संचालन कर रहा है।) 

विश्वविद्यालय स्नातक का अनुभव
लेखिका की परिचित एक आधुनिक विश्वविद्यालय स्नातक ने अपनी गर्भावस्था को स्तरीय कार्य की भाँति लिया । उसने प्रत्येक परिवर्धन की टिप्पणियाँ लिखी । वह अपने बच्चे के जन्मपूर्व के व्यायाम करती रहीं । उसने इस अन्धविश्वास का भी पालन किया कि बच्चे के जन्म से पूर्व कपड़े व अन्य सामान ले कर आना दुर्भाग्य है । परिणाम यह हुआ कि बच्चा बिना पालने व लंगोटों के इस संसार में आ गया । अस्पताल ने सहयोग न दिया । बच्चे का जन्म लगभग बिना सहायता के हुआ ।
अपने ढंग से रहने की स्वतंत्रता
लेखिका यह मानती है परम्परागत समुदायों में जच्चा बच्चा मृत्यु दर ऊँची है । परन्तु वह समझती है कि अपने ढंग से रहने की स्वतंत्रा इस मृत्यु दर को कम करने की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है ।
परम्परागत समुदायों में विवाह के प्रति पाश्चात्य दृष्टिकोण
कई परम्परागत समुदायों में विवाह होने पर महिलाएँ अपनी सास और संयुक्त परिवार में रहने के लिए जाती हैं । कुछ पश्चिमी मानवशास्त्री मानते हैं कि दुल्हन नए परिवार की सदस्या तब तक नहीं बनती जब तक वह बच्चे को जन्म न दे । और वह अपना नाम भी गंवा देती है और अपने प्रथम बच्चे की माँ के रूप में जानी जाती है । वे यह भी मानते हैं कि पति-पत्नी के बीच लैंगिक सम्बन्ध औपचारिक होते हैं और सभी सासें अन्यायी और प्रतिशोधात्मक होती हैं । वे समझते हैं कि यह परम्पराएँ पिछड़ेपन वाली
, क्रूर और गलत हैं । परन्तु लेखिका के विचार में यह व्याख्या गलत है ।
नारी समाज में रहने वाली महिलाओं को समझने में कठिनाई
परम्परागत समुदायों में रहने वाली महिलाओं को समझने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर वार्ताएं उस भाषा में होती हैं जो भाषा ये महिलाएं धाराप्रवाह नहीं बोल सकती । इसलिए वे अपनी बात व्यक्त नहीं कर सकती । इसके अतिरिक्त उन्हें लगता है कि उन्हें उनके बारे में बताया जाता है और पूछा कम जाता है । परिणाम यह होता है कि वे महिलाएँ विरोध में चुप रहती हैं या उन सम्मेलनों में बिल्कुल भाग लेना नहीं चाहती ।

बच्चे का अपने कुटुम्ब से सम्बन्ध
परम्परागत समुदायों में अपने माता-पिता की बजाय अपने चाचा-चाचियों से सम्बन्ध पर अधिक बल दिया जाता है । जैविक परिवारों को बलपूर्वक परहेज या जास्तविक पार्थक्य से जानबूझकर कमजोर बनाया जाता है ।
बंगलादेश में बच्चों का पालन
बंगलादेश में संयुक्त परिवार में बच्चों के पालन पोषण के बारे में लेखिका एक बंगलादेशी  महिला के द्वारा दिया गया वर्णन देती है । पाँच छ: वर्ष से कम आयु के बच्चों की देखभाल पूरे परिवार द्वारा की जाती है । एक बहू उन सबको नहलाती है, तो एक अन्य भोजन पकाती है और एक उन सबको भोजन परोसती है तब वे सब कट्ठा भोजन करने बैठते हैं । केवल रात को बच्चे अपनी-अपनी माँ के पास सोने के लिए जाते हैं । 



गर्भधारण का इनाम
एक एशियन महिला वर्णन करती है कि बंगलादेश में गर्भवती महिला को बच्चा पैदा करने का क्या इनाम मिलता है । गर्भवती युवती गर्भावस्था के अंतिम कुछ मास व शिशु के जीवन के प्रथम तीन मास के लिए अपनी माँ के घर जाती है । वहाँ उसे अपनी बहनों के साथ रहने का अवसर प्राप्त हो जाता है । वहाँ उसे ढेर सा प्यार मिलता है और सेवा होती है । उसे जो पसन्द हो खाने को दिया जाता है । जब बच्चा सात दिन का हो जाता है तो उसका जन्म मनाया जाता है । नाम रखने का उत्सव होता है । शिशु को नए कपड़े और माँ को साड़ी दी जाती है । दावत होती है, गाना-नाचना होता है । हल्दी व लहसुन की मालाएँ दुरात्माओं को दूर रखने के लिए पहनी जाती हैं ।
पश्चिमी शिल्पविज्ञान का प्रभाव
पश्चिमी औषधियों ने परम्परागत समुदायों के लिए समस्याएँ पैदा कर दी हैं । कृषि समाज में एलोपैथिक डॉक्टर महँगी औषधियों
, उपकरणों व बहुत बिजली पर निर्भर होते हैं जो उनके पास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते । यहाँ पर दक्षिण बन्दु रोगियों के आधुनिक अस्पताल का वर्णन दिया जाता है । प्रसव वार्ड कराहती महिलाओं से भरा था जो प्रसव पीड़ा अकेले सहन कर रही | खून की डबरियाँ फर्श पर थीं । नर्से परिष्कृत आधुनिक संयंत्रों में व्यस्त थीं और प्रसवपीड़ा  सहती महिलाओं की अनदेखी कर रही थीं ।

लेखिका निष्कर्ष निकालती है कि महिलाएँ अपना तन-मन बच्चे पैदा करने के लिए प्रस्तुत न करेंगी यदि घर पर बच्चे का स्वागत करने और माँ के साहस की प्रशंसा करने वाला कोई न होगा । उसे लगता है कि परम्परागत स्थानों पर मृत्यु संख्या अधिक होने पर भी, कृषकों का पश्चिमी शिल्प विज्ञान के अधिपत्य का विरोध करना उचित है ।

 

 

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