India Through a Traveller’s Eyes
Pearl S. Buck
Summary in Hindi
भारत के प्रति
आकर्षण
बचपन से ही लेखिका
को भारत के प्रति आकर्षण था । उसके परिवार के भारतीय डॉक्टर और उसकी पत्नी ने उसे
भारत के बारे में बताया था । उसे जो कुछ भी मिल सका वह भारत के बारे में पढ़ा था ।
भारत के रंग
रंग शब्द से
लेखिका को भारत के जीवन की विविधता की याद आती है । बहुत पहले यूरोप के गोरे असभ्य
लोगों ने कश्मीर पर आक्रमण किया था । कश्मीर के लोगों की त्वचा का रंग क्रीम जैसा
सुन्दर है । उनकी आँखें नीली और बाल सुनहरे हैं । भारत के लोग, चाहे उनकी त्वचा का रंग कैसा भी हो, सब काकस जाति से सम्बन्धित हैं । उसे
बड़ा विस्मय होता है कि भारत के लोग संसार भर में रहने लगे हैं ।
संसार पर प्रभाव
स्वतंत्रता
प्राप्ति के पश्चात् संक्षिप्त समय में भारत ने संसार को प्रभावित कर दिया । भारत
ने पाश्चात्य ज्ञान व भली-भाँति अंग्रेजी बोलने की योग्यता का अच्छा लाभ उठाया ।
राष्ट्रसंघ की सामान्य सभा की प्रथम महिला प्रेजिडेन्ट भारत की महिला थी । कोरिया
में कैदियों की अदला-बदली का कर्ता एक भारतीय जनरल था, जिसने सबका विश्वास जीत लिया था । भारत
के अडिग आदर्शवाद ने संसार को प्रभावित किया है ।
उसके आने का
उद्देश्य
निस्संदेह लेखिका
ने भारत में ताज व अन्य कई स्मारक देखे हैं और कई स्थानों पर घूमने गई थी । परन्तु
भारत में आने का उसका उद्देश्य ' दो वर्गों के
लोगों से मिलना और उनके विचारों को सुनना था- वे वर्ग थे नगरों में युवा
बुद्धिजीवी और गाँव में काश्तकार ।
बुद्धिजीवियों का
दृष्टिकोण
भारत के
बुद्धिजीवी इंग्लैंड के प्रति कटु और निराश थे । उनका विश्वास था कि द्वितीय विश्व
युद्ध अवश्यमेव होगा । प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने इंग्लैंड का साथ दिया था ।
परन्तु अपनी बारी में इंग्लैंड ने अपने वचन पूरे न किए थे । इसलिए बुद्धिजीवियों
ने निर्णय लिया था कि वे दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैंड का साथ नहीं देंगे । उनका
विश्वास था कि भारत को स्वतंत्र करने की इंग्लैंड की कोई इच्छा न थी । इसलिए उनका
इरादा युद्ध आरम्भ होने के पश्चात् विद्रोह करके इंग्लैंड को भारत को स्वतंत्र
करने के लिए विवश करने का था । परन्तु भारत ने दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैंड का
समर्थन किया । इसका कारण यह था कि उन्हें सभ्यता व बर्बरता के बीच चुनने पर विवश
होना पड़ा । उन्होंने सभ्य इंग्लैंड का साथ दिया और आजादी की योजना को स्थगित कर
दिया । अन्त में इंग्लैंड ने समझदारी से काम लेकर भारत को स्वतंत्र कर दिया।
यद्यपि कुछ रक्तपात हुआ जैसा कि चर्चिल ने भविष्यवाणी की थी ।
गाँधीजी का योगदान
भारत के
स्वतंत्रता संग्नाम में काश्तकार और बुद्धिजीवी एक ओर थे । गाँधीजी ने बहुत पहले
यह जान लिया था कि काश्तकारों तथा बुद्धिजीवियों दोनों को ही मनाना होगा । उनकी पकड़ दोनों पर थी । इसके अतिरिक्त उन्होंने
स्वतंत्रता बिना रक्तपात के प्राप्त की । अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम भारत की
स्वतंत्रता के संघर्ष के सामने फीका पड़ जाता है । संसार के लिए सीखने के लिए
शिक्षा है । युद्ध और वध से कुछ प्राप्त नहीं होता । कोई श्रेष्ठ ध्येय केवल समान
श्रेष्ठ साधनों द्वारा ही प्राप्त होता है ।
बेकारी और
निर्धनता
नगरों और कस्बों में हजारों बेकार शिक्षित युवक थे पुराने उपनिवेशी ढाँचे में
सिवाए सरकारी नौकरियों के कोई और नौकरियाँ पैदा करने की गुंजाइश न थी । परन्तु
गाँवों पर सबसे बुरा आघात हुआ था । वहाँ नितांत निर्धनता थी । लेखिका ने चीन में
निर्धनता देखी थी, फिर भी उसे लगा कि तुलना में चीनी
काश्तकार भारत के काश्तकार से धनी था । चीनी काश्तकार की भाँति भारतीय काश्तकार
सुसंस्कृत व सभ्य था । उसके परिवार की व्यवस्था व दार्शनिक धर्म ने उसके मन व
आत्मा को संवारा था, यद्यपि वह अनपढ़ था । गाँव छोटे बच्चे
पतले हाथ-पैर व बढ़े पेट के कारण दयनीय प्रतीत होते थे । तीन सौ वर्ष के उपनिवेशी
राज ने उनकी यह दुर्दशा कर दी थी । यह उस राज का परिणाम था जो लोगों को लाभ की
बजाए लोगों पर परजीवी था। जीवन अवधि केवल 27 वर्ष थी । यह कारण था कि भारतीय लोग शीघ्र ही विवाह कर लेते
थे ताकि जितना सम्भव हो बच्चे पैदा हो जाएँ ।
उत्साह से वंचित
उपनिवेशवाद का सबसे बुरा प्रभाव लोगों को पूर्णतः सरकार पर निर्भर बनाना था ।
उनमें उत्साह व स्वयं कार्य करने की इच्छा न रही थी । बम्बई और मद्रास के बीच की
भूमि मरुस्थल जैसी सूखी थी । पानी का स्तर काफी ऊँचा था । परन्तु लोगों में स्वयं
कुएँ खोदने में अग्रसर होने की इच्छा न थी ।
महान लोगों के लिए
आदर
लेखिका कई लोगों से मिली और उसने कई चीजों को देखा । उसने देखा कि वहाँ महान नर-नारियों
के प्रति बहुत सम्मान था । जिस व्यक्ति में त्याग करने की क्षमता है वही नेता बना
रह सकता है । वह व्यक्ति जो निस्वार्थ, ईमानदार, उच्च विचारों वाला
है वह ही विश्वास योग्य है। गाँधीजी को राष्ट्रीय स्तर पर आदर मिलता था । परन्तु
स्थानीय व्यक्ति को भी तभी आदर मिलता था यदि उसमें ये गुण हों ।
भारतीय परिवार के
बारे में विचार
लेखिका एक भारतीय परिवार के साथ गाँव में रही ।
वह अपने अवलोकन और अनुभवों का वर्णन करती है ।
घर की दीवारें
मिट्टी से बनी थीं, और फर्श गाय के गोबर और पानी के मिश्रण
से पोते हुए थे। घर का सक्रिय मुखिया एक छोटा भाई था । बड़ा भाई पक्षाघात से आहत
था । वह एक प्रकार के पिंजरे में लेटा हुआ था । वह अगले कमरे में इसलिए था ताकि वह
उन लोगों की बात सुन सके जो लगातार उससे मिलने आते रहते थे । उसे संत समान मानते
थे । लेखिका ने भोजन उस घर में किया । भोजन साधारण था और केले के ताजे हरे पत्तों
पर परोसा गया था । उसे चीनी काँटा से खाने का अभ्यास था । वहाँ उसने अन्य लोगों की
भाँति दाएँ हाथ से खाया। खाना खाने से पूर्व उसे हाथ धोने के लिए पानी और साफ
तौलिया दिया गया । उसे पता चला कि वे दाएँ हाथ से खाते थे और बाएँ हाथ का प्रयोग
निकृष्ट कार्यों के लिए करते थे । उसके मेजबान ने कमरे के सामने वाले कोने में
उसकी ओर पीठ मोड़कर भोजन किया । उसे पता चला कि इस प्रकार उसने अपनी जाति के धर्म
का पालन किया, परन्तु इसमें कोई अनादर भाव न था। जब
लेखिका मेजबान की पत्नी से बातें कर रही थी , एक सज्जन अन्दर आया । वह चुपचाप कमरे के सुदूर कोने में चला
गया और वह पंद्रह मिनट तक झुका रहा । उसे पता चला कि वह मेजबान का एक बड़ा भाई था, और वहाँ पूजा करने आया था क्योंकि उसका
घर उसके कारोबार के स्थान से थोड़ा अधिक दूर था ।
कम, माई बिलब्ड
लेखिका ने भारत की यात्रा की पृष्ठभूमि पर एक पुस्तक, ' कम, माइ बिलव्ड' लिखी । अधिकतम अमेरिकी लोग उसे समझ न सके, परन्तु भारतीयों के लिए वह कोई पहेली न
थी । इसका कारण यह था कि विश्व में लोग अभी यह नहीं जानते कि उपलब्धि का मूल्य
पूरा चुकाना पड़ता है । अपनी पुस्तिका में उसने तीन ईसाई मिशनरियाँ चुनी हैं ।
ईसाई मिशनरी निष्ठावान व्यक्ति होता है । उसका विश्वास है, और यह प्रचार करता है कि ईश्वर वही एक है
जो सारी मानवजाति का पिता है और सब मनुष्य आपस में भाई हैं । परन्तु वह समझती है
कि उसने इस विश्वास का पूर्ण मूल्य नहीं चुकाया है । उसे अपनी आस्था के पूरे अर्थ
को स्वीकार नहीं किया है । परन्तु भारत के लोग जानते हैं कि किसी आदर्श का पूरा
मूल्य चुकाना किसे कहते हैं ।
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